जो कसमें खा रहे थे यूँ हवा का रुख बदलने की,
वही अब इस सियासत की हवा के साथ बहते हैं।
ज़माने की यहाँ इंसानियत से दुश्मनी क्यों है,
जो दिल के साफ़ होते हैं, वही तो ज़ुल्म सहते हैं।
अज़ब हैं लोग, कपड़ों की तरह रिश्ते बदलते हैं,
इसी ख़ातिर यहाँ रिश्तों के सारे महल ढहते हैं।
जिन्हें आस्तीन के साँपों सा तुमने मुद्दतों पाला,
वो अपने ज़हर से देखो तुम्हारी कथा कहते हैं।
अब उनसे दूरियों का कोई भी मतलब नहीं रहा,
जो सुबहो-शाम यादें बन के मेरे दिल में रहते हैं।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
वही अब इस सियासत की हवा के साथ बहते हैं।
ज़माने की यहाँ इंसानियत से दुश्मनी क्यों है,
जो दिल के साफ़ होते हैं, वही तो ज़ुल्म सहते हैं।
अज़ब हैं लोग, कपड़ों की तरह रिश्ते बदलते हैं,
इसी ख़ातिर यहाँ रिश्तों के सारे महल ढहते हैं।
जिन्हें आस्तीन के साँपों सा तुमने मुद्दतों पाला,
वो अपने ज़हर से देखो तुम्हारी कथा कहते हैं।
अब उनसे दूरियों का कोई भी मतलब नहीं रहा,
जो सुबहो-शाम यादें बन के मेरे दिल में रहते हैं।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~